Tuesday, 4 November 2014

Muharram


ये महीना मुहर्रम का है और यह दुनिया को बताने का अवसर है
कि कोई ज़ालिम, बादशाह भले ही हो सकता है,
अपने आप को धार्मिक भले ही कहलवा सकता है,
लेकिन धार्मिक हो नहीं सकता,

क्योंकि हर धर्म की सबसे पहली शर्त है इंसानियत का होना |
बिना इंसानियत के सब कुछ बेकार है ! ज़ुल्म करने वालों पर धिक्कार है !!!
इस मुहर्रम के जुलुस में शिया, सुन्नी ,हिन्दू, सिख, इसाई, दुनिया के कोने कोने में अपने अपने रूप से, भाग लेते हैं और अपनी श्रधांजलि इमाम हुसैन (अ.स) को पेश करते हैं |


किशन लाला उर्फ़ “किशन" सीतापुरी मुहर्रम में एक नौहा पढ़ा करते थे
जिसके शब्द कुछ इस तरह हैं:-
भारत में अगर आ जाता ह्रदय में उतारा जाता
यूँ चाँद बनी हाशिम का धोखे से ना मारा जाता |
चौखट से ना उठते माथे, हर ओर से पूजा होती
इस देश की भाषाओँ में भगवान् पुकारा जाता |

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